यह लेख हमारी टीम द्वारा 'सिनेमा और शास्त्रीय संगीत' पर बनाई हुई एक डाक्यूमेंट्री फिल्म की प्रतिलिपि है। इसमें कुछ जाने-माने संगीतज्ञ और शिक्षकों के साक्षात्कार भी हैं। "आधुनिक राग", इस नाम से बनी ये फिल्म, सिनेमा के गीतों में हिन्दुस्तानी संगीत के रागों के प्रयोग पर आधारित है।
सरगम के सात स्वर- सा, रे, गा, मा, पा , धा , नी, जो मिलकर बन जाते हैं- राग। राग, भारतीय शास्त्रीय संगीत का आधार, उसकी आत्मा है।
पंडित लक्ष्मण के. पंडित- हमारा संगीत जो है वो दुनिया में सबसे अलग, यूनिक संगीत है। यहाँ हम राग गाते हैं। राग याने स्वरों की विशिष्ट रचना। जोकि जनचित्त को आकर्षित करे, मधुर लगे , उसे राग कहते हैं।
भारतीय शास्त्रीय संगीत का सम्पूर्ण सार राग में ही निहित है। राग और ताल मिलकर शास्त्रीय संगीत को पूर्ण करते हैं। राग को गाने का ढंग ही उसे रूप प्रदान करता है, जिससे वह तुरंत ही पहचान में आ जाता है। राग का अर्थ है रंग, यानी राग हमारे जीवन में रंग भरता है- सुख के, दुःख के, प्रेम के। राग कोई गीत नहीं है बल्कि यह अनगिनत गीतों का आधार बन सकता है। भारतीय फिल्मों में शास्त्रीय संगीत का विशेष स्थान है। 40 से 70 तक के दशक की फिल्मों में शास्त्रीय संगीत पर आधारित गीतों की रचना की गई है। के. एल. सहगल, मन्ना दे और रफ़ी के गाए गीतों को सुना जाए तो पता चलता है कि शास्त्रीय संगीत कितना अधिक प्रयोग में लाया गया है।
सावनी मुदगल- हमारी जो हिंदी फिल्में हैं, उनमे भी काफ़ी इंडियन क्लासिकल म्यूज़िक को प्रयोग में लाया गया है। जैसे पुरानी फ़िल्में अगर देखेँ, इनफैक्ट उसमे ज़्यादा होता था, कई गानें राग पर आधारित होते थे । कइयों में बड़े-बड़े सितार वादक , संतूर वादक , बांसुरी वादक -इन लोगों ने भी बजाया है, जो बड़े क्लासिकल आर्टिस्ट हैं। तो उनकी भी कोई कम्पोजीशन सुनके ऐसा लगता है जैसे, ये राग भैरवी में है, माने ऐसे भी कोई रचना हो सकती है जो लाइट म्यूजिक में गिनी जाती हो ?
जगदीप सिंह बेदी- आप पुरानी फ़िल्में देखेंगे तो, उसमे जागो मोहन प्यारे करके जो गाना है लताजी का वो भैरव राग पर आधारित है। मन तड़पत हरी दर्शन को आज, रफ़ी जी का गाया हुआ- ये मालकौंस राग पर आधारित है। ऐसे दरबारी राग में भी कई सारे गीत हैं।
पिछले दो दशकों में शास्त्रीय संगीत का प्रयोग हिंदी फिल्मों में कम ज़रूर हुआ है पर ख़त्म नहीं हुआ। उदाहरण के तौर पर दिल से का उदित नारायण द्वारा गया हुआ ऐ अजनबी, भैरवी राग के बहुमुखी आयामों को दर्शाता है। रंगीला का हरिहरन द्वारा गया हुआ और ऐ. आर. रेहमान द्वारा संगीतबद्ध हाए रामा ये क्या हुआ आज भी हमें फिल्म के दृश्यों की याद दिलाता है। पूरिया धनाश्री राग पर आधारित फ़िल्मी गीत का ये सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है।
सावनी मुदगल- अभी कुछ साल पहले अनु मालिक ने लिया था एली रे एली क्या है ये पहेली, ये भीमपलासी राग पर बेस्ड है।
देवदास में गIए माधुरी दीक्षित के छंद के साथ कविता जी का गया हुआ ढाई शाम रोक लई, बसंत राग के सुरों में पिरोया गया है। आर. डी. बर्मन के संगीत से सजी अंतिम फिल्म 1942 ए लव स्टोरी का गीत प्यार हुआ चुपके से , देस राग के सुरों में बनी हुई एक सुन्दर रचना है। कविता जी का गाया हुआ ये गीत हमें पंचम दा की याद दिलाता है।
ये सभी गीत राग पर आधारित ज़रूर हैं पर शुद्ध शास्त्रीय संगीत ख्याल, तराना, ठुमरी, ध्रुपद, धमार, आदि गायन शैलियों में गाया जाता है। ग़दर फिल्म की चर्चित ठुमरी आन मिलो सजना, खमाज राग पर आधारित शुद्ध, शास्त्रीय रचना है। एक ताज़ा उदाहरण दिल्ली 6 का तोड़ी राग पर आधारित ख्याल भोर भई तोरी बाँट तकत पिया है, जिसे ए. आर. रेहमान के अर्रेंज किये हुए उस्ताद ग़ुलाम खां की पुरानी रचना के साथ श्रेया घोषाल ने गाया है।
शास्त्रीय संगीत में भावों की प्रधानता है लेकिन आज के दौर में तकनीक और वाद्य प्रधान संगीत बनाया जा रहा है जो कि युवाओं को रिझानेँ के उद्देश्य से किया जा रहा है।
सावनी मुदगल- पुराने टाइम में ये होता था कि सब कुछ एक ही बार में रिकॉर्ड हो जाएगा। You had accoustic instruments like सितार, तबला। Synthesiser का इतना use नहीं होता था। कंप्यूटर पे इतना कुछ नहीं होता था। आज कल एक लाइन गाई, उसी को कंप्यूटर पर सुर में ले आए ताल में भी ले आए , सब कुछ कर लिया, Softwares इतने सारे हैं। Everything is very arrangement based you know. कई बार सिर्फ कंप्यूटर पर ही पूरा बैकग्राउंड म्यूजिक हो जाता है और उसमे एक-दो लाइन हमने गा दी बाकी पूरा पेस्ट कर दिया जैसे. So its very easy, convenient in one sense पर मेलोडीज कहीं लूज़ भी होती हैं , I feel.
अपनी पुरानी और गंभीर छवि के लिए जाना जाने वाला शास्त्रीय संगीत वास्तव में बहुत चंचल और आधुनिक है क्यूंकि इसमें हर गायक, संगीतकार द्वारा नई संभावनाएं बनाने का अवसर निहित है। संगीत, साधना की अवस्था है , आत्मा की शुद्धि का ऐसा माध्यम है जिससे हर कोई जुड़ा रहता है। आज आम आदमी की जानकारी के अभाव के कारण इसकी महत्ता कम हो गई है, पर कुछ चुनिंदा संगीतकारों के कारण ये उम्मीद बाकी है कि हमारा मधुर संगीत अपना अस्तित्व बनाए रखेगा। और ये उम्मीद ज़िंदा रहेगी क्यूंकि श्रोताओं ने हमेशा अच्छे संगीत को सुना भी है और सराहा भी है।
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